सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ (दोहा 21 – दोहा 25) | Sunderkand Ke Dohe 21 To 25 | सुंदरकांड के 60 दोहे

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Sunderkand Ke Dohe 21 To 25 सुन्दरकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। सुन्दरकाण्ड में हनुमान का लंका प्रस्थान, लंका दहन से लंका से वापसी तक के घटनाक्रम आते हैं। ShrijiDham

श्री राम चरित मानस-सुन्दरकाण्ड (दोहा 21 – दोहा 25)

Sunderkand Ke Dohe 21 To 25

Sunderkand Ke Dohe 21 To 25 ॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 21 ॥

जाके बल लवलेस तें जितेहु चराचर झारि,तास दूत मैं जा करि हरि आनेहु प्रिय नारि।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु सन परी लराई॥

समर बालि सन करि जसु पावा। सुनि कपि बचन बिहसि बिहरावा॥

खायउँ फल प्रभु लागी भूँखा। कपि सुभाव तें तोरेउँ रूखा॥

सब कें देह परम प्रिय स्वामी। मारहिं मोहि कुमारग गामी॥

जिन्ह मोहि मारा ते मैं मारे। तेहि पर बाँधेउँ तनयँ तुम्हारे॥

मोहि न कछु बाँधे कइ लाजा। कीन्ह चहउँ निज प्रभु कर काजा॥

बिनती करउँ जोरि कर रावन। सुनहु मान तजि मोर सिखावन॥

देखहु तुम्ह निज कुलहि बिचारी। भ्रम तजि भजहु भगत भय हारी॥

जाकें डर अति काल डेराई। जो सुर असुर चराचर खाई॥

तासों बयरु कबहुँ नहिं कीजै। मोरे कहें जानकी दीजै॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 22 ॥

प्रनतपाल रघुनायक करुना सिंधु खरारि, गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

राम चरन पंकज उर धरहू। लंका अचल राजु तुम्ह करहू॥

रिषि पुलस्ति जसु बिमल मयंका। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका॥

राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥

बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषन भूषित बर नारी॥

राम बिमुख संपति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई॥

सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं॥

सुनु दसकंठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥

संकर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 23 ॥

मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान, भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

जदपि कही कपि अति हित बानी। भगति बिबेक बिरति नय सानी॥

बोला बिहसि महा अभिमानी। मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥

मृत्यु निकट आई खल तोही। लागेसि अधम सिखावन मोही॥

उलटा होइहि कह हनुमाना। मतिभ्रम तोर प्रगट मैं जाना॥

सुनि कपि बचन बहुत खिसिआना। बेगि न हरहु मूढ़ कर प्राना॥

सुनत निसाचर मारन धाए। सचिवन्ह सहित बिभीषनु आए॥

नाइ सीस करि बिनय बहूता। नीति बिरोध न मारिअ दूता॥

आन दंड कछु करिअ गोसाँई। सबहीं कहा मंत्र भल भाई॥

सुनत बिहसि बोला दसकंधर। अंग भंग करि पठइअ बंदर॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 24 ॥

कपि कें ममता पूँछ पर सबहि कहउँ समुझाइ, तेल बोरि पट बाँधि पुनि पावक देहु लगाइ।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥

जिन्ह कै कीन्हिसि बहुत बड़ाई। देखउ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥

बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना॥

जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥

रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥

कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥

बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥

पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघुरूप तुरंता॥

निबुकि चढ़ेउ कप कनक अटारीं। भईं सभीत निसाचर नारीं॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 25 ॥

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास, अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

देह बिसाल परम हरुआई। मंदिर तें मंदिर चढ़ धाई॥

जरइ नगर भा लोग बिहाला। झपट लपट बहु कोटि कराला॥

तात मातु हा सुनिअ पुकारा। एहिं अवसर को हमहि उबारा॥

हम जो कहा यह कपि नहिं होई। बानर रूप धरें सुर कोई॥

साधु अवग्या कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥

जारा नगरु निमिष एक माहीं। एक बिभीषन कर गृह नाहीं॥

ताकर दूत अनल जेहिं सिरिजा। जरा न सो तेहि कारन गिरिजा॥

उलटि पलटि लंका सब जारी। कूदि परा पुनि सिंधु मझारी॥

| Sunderkand Ke Dohe 21 To 25 End |

FaQ About Sunderkand Ke Dohe 21 To 25 End

रोज सुंदरकांड करने से क्या होता है?

 प्रतिदिन सुंदरकांड का पाठ करने पर व्यक्ति को कर्ज और मर्ज दोनों से शीघ्र ही छुटकारा मिलता है.

5 दिनों में सुंदरकांडा कैसे पढ़ा जाए?

पहले दिन अध्याय 1-15, दूसरे दिन 16-37, तीसरे दिन 38वां अध्याय, चौथे दिन 39-54 और पांचवें दिन शेष पढ़ें। शुक्रवार से शुरू करें, प्रतिदिन 9 अध्याय पढ़ें और अगले शुक्रवार को पूरा पढ़ें।

क्या सुंदरकांड को रोज पढ़ा जा सकता है?

यदि कोई रोज सुंदर कांड का पाठ करना चाहता है तो सप्ताह का कोई भी दिन ठीक है। 

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