कैसे पता चलेगा कि भगवान मुझे मिलेंगे या नहीं ? Kaise Pata Chalega Bhagwan Milega Ya Nahi?

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एकांतिक वार्तालाप में प्रेमानंद जी महाराज से किसने प्रश्न किया : गुरुजी मन में हर समय सवाल चलते रहते हैं आपके माध्यम से जाना कि सुख भौतिक वादिक चीजों में नहीं परंतु ईश्वर की प्राप्ति में होता और ईश्वर के चिंतन में होता है इसके पश्चात अब मन में इस सवाल में परेशान हो जाता हूं क्या भगवत प्राप्ति होगी क्या सिर्फ हमारा प्रयास इसको सुनिश्चित कर सकता है?(Kaise Pata Chalega Bhagwan Milega Ya Nahi?)

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Kaise Pata Chalega Bhagwan Milega Ya Nahi?

Kaise Pata Chalega Bhagwan Milega Ya Nahi

प्रेमानन्द जी महाराज ने उत्तर दिया: अभी देखो अगर ठीक से शब्द सुनोगे तो उत्तर मिल गया पहले शब्द काहा है कि गुरु के चरणों का आश्रय ले लो आपका शब्द बताता है कि आप आश्रित नहीं है अगर आश्रित होते तो क्या भगवत प्राप्ति होगी यह प्रश्न नहीं उठ सकता आप समर्थ खिवैया की नौका में नहीं बैठे हैं अभी तैरने वाले हैं तो अब आपको डर लग रहा है कि पता नहीं मैं पार जाऊंगा कि नहीं जाऊंगा कि डूब तो नहीं जाऊंगा बीच में अगर समर्थ खिवैया के नाव में बैठे होते तो आपको ता कि नहीं मैं तो डूबा ही डूबा हूं मैं तो नाव में बैठा हूं इसलिए पार हो रहा हूं |

लाखों पार हो गए हैं गुरु चरणों का आश्रय लेकर तो हमारा कहीं बाल बाका नहीं होने वाला जब तक हम गुरुदेव के चरणों का आश्रय नहीं लेते तो यह प्रश्न नहीं खत्म होगा जब गुरुदेव के चरणों का आश्रय ले लेते तो भरोसा जागृत हो जाता है कि मेरे में अगर त्रुटि है भी तो मेरे गुरुदेव ने हाथ पकड़ा मुझे पार कर देंगे सच्ची बात समझना गुरु आश्रित का कभी ऐसा प्रश्न नहीं हो सकता |

पता नहीं मेरा कल्याण होगा कि नहीं होगा नहीं समर्थ गुरुदेव है मेरे में कमी है मैं तैर नहीं सकता पर मैं उनकी नौका में बैठा हूं इसलिए पार हो जाऊंगा बात समझ में लो ना हां अपार संसार समुद्र मध्य यह बड़ा अपार संसार समुद्र है इससे कैसे पार जाऊं समज तो में शरणम की मस्ती किसकी शरण जाऊ कैसे पारू तो गुरु कृपालु कृपया वदत श्री विश्वेश्वर पादाम बुज दीर्घ नौका गुरुदेव ने कृपा करके बताया कि भगवान जो विश्वेश्वर है इनके चरणों का आश्रय ले लो|

ये दीर्घ नौका है इस संसार समुद्र से पार कर देगी मामे भी प्रपद्यंते माया मेता तरते अब हम कैसे चले अब गुरुदेव का आश्रय लो वो जो कह रहे हैं उनकी बात पर विश्वास करो वैसे चल दो तो चलने से क्या होगा यह प्रश्न खत्म हो जाएगा आपका जैसे गुरुदेव आपकी बात पर विश्वास है पर खुद पर लगता है कि गलती ना हो जाए कभी कु खुद तैरने के लिए तैयार हो क्या नौका पर बैठे रहो नौका में बैठने का मतलब होता है नौका किसे कहते हैं नानक साहब जी ने कहा नानक नाम जहाज है चढ़े से उतरे पार|

अब अगर हम नौका में बैठे मतलब नाम जप कर तो मुझे विश्वास क्या मेरा पार हो गया अच्छा मेरे से गलती हो जाएगी तो जैसे छोटा बच्चा है ना तो इधर-उधर की चीजें देखता है तो पहले मां की तरफ देखता है ऐसे जहा मां ऐसे कह देती है तो नेत्र हटा लेता है ऐसे ही हम प्रभु और गुरुदेव की तरफ देखते हैं हमारे मन में गंदी बातें उठती है यार मेरे गुरुदेव देख रहे हैं मेरे प्रभु देख रहे हैं |

अगर मैं गंदी बात करूंगा तो मुझे डांट लगेगी मेरा भजन रुक जाएगा भजन में जब प्रीति होगी तो गंदी बातें सब छूट जाएंगी डरो मत ये डरने का देखो अगर पहले सोच ले कि मैं युद्ध करूंगा पता नहीं कहीं घाव हो जाए तो हार गया तो ऐसे नहीं वीर योद्धा परिणाम में वह पहले युद्ध देखें जो होगा स होगा पहले मैं युद्ध करूंगा वीर जैसे सोचता है ऐसे ही हमको सोचना है कि मैं गुरु के सहारे हूं गुरु मेहरवान तो चेला पहलवान यह माया मुझे कैसे परास्त कर देगी मेरे साथ गुरुदेव है नाम है इतनी हिम्मत रखो अब गिर गए तो गिर गए तो पकड़ने वाले भी तो हैं उठाने वाले भी तो हैं |

भगवान के वचन पर विश्वास करो करो सदा तिन के रखवारी जिम बालक राखे मतारी जैसे मां अपने बच्चे की रक्षा करती है ऐसे सदगुरु और भगवान अपने जनों की रक्षा करते हैं ऐसा ना हो तो फिर जैसे सब नौजवान चल रहे हैं तो सब डूबी जाए नौका नहीं डूब जाए हां भूल से भी कोई गलती का कोई सवाल ही नहीं इनके मन में गलती उठेगी तो इष्ट और गुरुदेव चढ़े बैठे इनके ऊपर मन को दबा कर के चलाया जाता है तो डर तब होता है |

जब हम स्वयं पार होना चाहते हैं और डर तब नहीं होता जब हम इष्ट और गुरु के भरोसे होते हैं अब डर क्या गर्दन कटवाने में भी डर नहीं हुई महापुरुषों को अपनी धर्म अपनी निष्ठा से नहीं हटे गर्दन कटवा दी सोच लो कैसा निडर स्वभाव हो गया भगवान का भरोसा उस ईश्वर परमात्मा का इतना अपनापन इतना प्यार कि प्यारा शरीर काट दिया गया लेकिन धर्म नहीं छोड़ा दीवाल पर चुना गए लेकिन धर्म नहीं छोड़ा बड़े बड़े प्रताड़ना शरीर की कष्ट पूर्ण सही धर्म ने तो फिर हम कैसे कह सकते हैं |

हम भी तो उन्हीं के बच्चे हैं हम भी तो उन्हीं की शरण में हैं हम भी तो उसी परमात्मा का आश्रय लिए तो कहीं न कहीं आश्रय में कमजोरी तो ऐसा बोल ले आप क्यों मतलब विश्वास में तो कोई कमजोरी नहीं गुरुदेव तो फिर निश्चिंत रहे कोई है चाहे जहां रहो तुम मल कहीं भी रहो भगवान ने जब बामन रूप विस्तार किया तो एक में पूरा सब ऊपर का हिसाब किताब नाप लिया था और एक में नीचे का सब नाप लिया था |

कहा तीसरा पग दे महाराज बलि से तो सोचो आप कहीं भी हो हलैंड, इंग्लैंड, अमेरिका भगवान से दूर हो क्या भगवान के चरणों के पास ही हो सब भगवान के अंतर्गत हम विराट रूप भगवान की गोद में वास करते हैं भगवान को कहा गया महतो महिया अणु अयान इतने छोटे हैं कि जिसे तुम सूक्ष्म दर्श से जिस जीव को देख सकते हो उसके अंदर भी आराम से सो रहे हैं वो और इतने महान है कि अनंत ब्रह्मांड भी उनके अंदर भी कोने में है |

ऐसे भगवान के में तो हमें थोड़ी सूचना है इतनी दूर देश में भगवान हमारी रक्षा कैसे करेंगे भगवान सर्वत्र है तो जहां आप हो वहां भी है भगवान सबके हैं तो आपके भी हैं भगवान सब समय में है तो जिस समय आपको कोई खतरा होने वाला उस समय भी भगवान है पर आप भगवान से को भूल जाते हैं |

भगवान से विमुख हो जाते हैं तभी आप धोखा खाते हैं अगर भगवान की याद रहे तो आपको कोई परास्त नहीं कर सकता दूर रहता हूं ना तो वहां पर आपको रोज सुनता हूं पर क्योंकि दूर रहता हूं तो कभी-कभी तो आप ये सोचो जैसे आज हमसे बात कर रहे हो नजदीक बैठ के तो ऐसे मोबाइल में रख लिया ऐसे महाराज सत्संग कर रहे हो मैं सुन रहा हूं बैठे हुए अगर आप तन्मयता करोगे ना तो स्वप्न में आकर उपदेश मिल जाएंगे |

आपको जागृत में पता चलेगा मुझे बचा लिया गया मैं तो गिरने जा रहा था आश्चर्य होगा आपको कहीं दूर नहीं हो बिल्कुल नजदीक हो बिल्कुल हमारे पास बैठे हो हमारी बात ना मानो भजन ना करो तो बहुत दूर हो आप जान ही नहीं पाओगे |

FaQ. कैसे पता चलेगा कि भगवान मुझे मिलेंगे या नहीं ?

प्रश्न: कोई ईश्वर को कैसे प्राप्त कर सकता है?

उत्तर: व्यक्ति आत्मनिरीक्षण, भक्ति और आध्यात्मिक गुरु के मार्गदर्शन में शरण लेने के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न: ईश्वर की प्राप्ति में आस्था और भक्ति की क्या भूमिका है?

उत्तर: ईश्वर की खोज में आस्था और भक्ति को आवश्यक तत्वों के रूप में रेखांकित किया गया है। गुरु पर अटूट विश्वास रखने और सच्ची भक्ति से संलग्न रहने से ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है।

प्रश्न: क्या ईश्वर को प्राप्त करने के लिए आध्यात्मिक गुरु की शरण लेना आवश्यक है?

उत्तर: हां, आध्यात्मिक गुरु के मार्गदर्शन में शरण लेने के महत्व, गुरु की शिक्षा और समर्थन ईश्वर की प्राप्ति को आसान बना सकता है।

प्रश्न: क्या आध्यात्मिक अभ्यास और ध्यान से ईश्वर का अनुभव हो सकता है?

उत्तर: हां, ध्यान, प्रार्थना और आत्म-अनुशासन जैसी आध्यात्मिक प्रथाएं भगवान की उपस्थिति का अनुभव करने के लिए स्थितियां बना सकती हैं।

प्रश्न: आध्यात्मिक यात्रा में कोई संदेह और भय पर कैसे काबू पा सकता है?

उत्तर: गुरु के मार्गदर्शन पर भरोसा करना, भक्ति विकसित करना और आध्यात्मिक प्रथाओं के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता बनाए रखना संदेह और भय को दूर करने में मदद कर सकता है।

प्रश्न: भगवान और गुरु के प्रति समर्पण का क्या महत्व है?

उत्तर: भगवान और गुरु के प्रति समर्पण को आध्यात्मिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण पहलू माना जाता है। इसमें अहंकार को छोड़ना और ईश्वरीय इच्छा पर पूरा भरोसा रखना शामिल है, जिससे ईश्वर के साथ गहरा संबंध बनता है।

प्रश्न: क्या कोई गुरु के मार्गदर्शन के बिना ईश्वर का अनुभव कर सकता है?

उत्तर: ईमानदार साधक जो ईमानदारी से आत्म-चिंतन और भक्ति का अभ्यास करते हैं, वे अभी भी स्वतंत्र रूप से भगवान की उपस्थिति का अनुभव कर सकते हैं।

प्रश्न: कोई व्यक्ति दैनिक जीवन में आध्यात्मिक जागरूकता कैसे बनाए रख सकता है?

उत्तर: आध्यात्मिक जागरूकता बनाए रखने में निरंतर अभ्यास, नियमित ध्यान और दैनिक गतिविधियों में सचेतनता शामिल है। यह प्रार्थना और भक्ति के माध्यम से भगवान से जुड़े रहने के महत्व पर भी जोर देता है।

प्रश्न: क्या ईश्वर की राह पर चलने वाले साधकों के लिए कोई विशिष्ट आध्यात्मिक अनुशासन की सिफारिश की गई है?

उत्तर: हां, विभिन्न आध्यात्मिक विषयों जैसे ध्यान, निस्वार्थ सेवा (सेवा), पवित्र मंत्रों का जाप और भगवान के साथ अपनी समझ और संबंध को गहरा करने के लिए आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने का सुझाव देता है।

प्रश्न: प्रस्तुत शिक्षाओं के अनुसार, ईश्वर को खोजने का अंतिम लक्ष्य क्या है?

उत्तर: ईश्वर की तलाश का अंतिम लक्ष्य आध्यात्मिक मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करना और शाश्वत आनंद और परमात्मा के साथ मिलन का अनुभव करना है। अतिक्रमण की इस स्थिति को आध्यात्मिक यात्रा की परिणति के रूप में देखा जाता है।

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