Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 1 To 12: श्री हित चौरासी जी II श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 1 से 12 Hindi Lyrics 

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Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 1 To 12 | श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 1

Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 1 To 12

जोई जोई प्यारो करे सोई मोहि भावे, भावे मोहि जोई सोई सोई करे प्यारे
मोको तो भावती ठौर प्यारे के नैनन में, प्यारो भयो चाहे मेरे नैनन के तारे
मेरे तन मन प्राण हु ते प्रीतम प्रिय, अपने कोटिक प्राण प्रीतम मोसो हारे
जय श्रीहित हरिवंश हंस हंसिनी सांवल गौर, कहो कौन करे जल तरंगिनी न्यारे।।1।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 2

प्यारे बोली भामिनी, आजु नीकी जामिनी भेंटि नवीन मेघ सौं दामिनी 
मोहन रसिक राइ री माई तासौं जु मान करै, ऐसी कौन कामिनी ।
(जैे श्री) हित हरिवंश श्रवन सुनत प्यारी राधिका, रमन सौं मिली गज गामिनी ।।2।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 3

प्रात समै दोऊ रस लंपट, सुरत जुद्ध जय जुत अति फूल।
श्रम-वारिज घन बिंदु वदन पर, भूषण अंगहिं अंग विकूल।
कछु रह्यौ तिलक सिथिल अलकावालि, वदन कमल मानौं अलि भूल।
(जै श्री) हित हरिवंश मदन रँग रँगि रहे, नैंन बैंन कटि सिथिल दुकुल ।।3।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 4

आजु तौ जुवती तेरौ वदन आनंद भरयौ, पिय के संगम के सूचत सुख चैन।
आलस बलित बोल, सुरंग रँगे कपोल, विथकित अरुन उनींदे दोउ नैंन।।
रुचिर तिलक लेस, किरत कुसुम केस;सिर सीमंत भूषित मानौं तैं न।
करुना करि उदार राखत कछु न सार;दसन वसन लागत जब दैन।।
काहे कौं दुरत भीरु पलटे प्रीतम चीरु, बस किये स्याम सिखै सत मैंन।
गलित उरसि माल, सिथिल किंकनी जाल, (जै श्री) हित हरिवंश लता गृह सैंन ।।4।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 5

आजु प्रभात लता मंदिर में, सुख वरषत अति हरषि जुगल वर।
गौर स्याम अभिराम रंग भरे, लटकि लटकि पग धरत अवनि पर ।
कुच कुमकुम रंजित मालावलि, सुरत नाथ श्रीस्याम धाम धर ।
प्रिया प्रेम के अंक अलंकृत, विचित्र चतुर सिरोमनि निजु कर ।
दंपति अति मुदित कल, गान करत मन हरत परस्पर|
(जै श्री) हित हरिवंश प्रंससि परायन, गायन अलि सुर देत मधुर तर ।।5।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 6

कौन चतुर जुवती प्रिया, जाहि मिलन लाल चोर है रैंन 
दुरवत क्योंअब दूरै सुनि प्यारे, रंग में गहले चैन में नैन ।।
उर नख चंद विराने पट, अटपटाे से बैन ।
(जै श्री) हित हरिवंश रसिक राधापति प्रमथीत मैंन ।।6।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 7

आजु निकुंज मंजु में खेलत, नवल किसोर नवीन किसोरी 
अति अनुपम अनुराग परसपर, सुनि अभूत भूतल पर जोरी ।।
विद्रुम फटिक विविध निर्मित धर, नव कर्पूर पराग न थोरी ।
कौंमल किसलय सैंन सुपेसल, तापर स्याम निवेसित गोरी ।।
मिथुन हास परिहास परायन, पीक कपोल कमल पर झोरी ।
गौर स्याम भुज कलह मनोहर, नीवी बंधन मोचत डोरी ।।
हरि उर मुकुर बिलोकि अपनपी, विभ्रम विकल मान जुत भोरी ।
चिबुक सुचारु प्रलोइ प्रवोधत, पिय प्रतिबिंब जनाइ निहोरी ।।
‘नेति नेति’ बचनामृत सुनि सुनि, ललितादिक देखतिं दुरि चोरी ।
(जै श्री) हित हरिवंश करत कर धूनन, प्रनय कोप मालावलि तोरी ।।7।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 8

अति ही अरुन तेरे नयन नलिन री 
आलस जुत इतरात रंगमगे, भये निशि जागर मषिन मलिन री ।।
सिथिल पलक में उठति गोलक गति, बिंध्यौ मोंहन मृग सकत चलि न री ।
(जै श्री)हित हरिवंश हंस कल गामिनि,संभ्रम देत भ्रमरनि अलिन री ।।8।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 9

बनी श्रीराधा मोहन की जोरी 
इंद्र नील मनि स्याम मनोहर, सात कुंभ तनु गोरी ।।
भाल बिसाल तिलक हरि, कामिनी चिकुर चन्द्र बिच रोरी ।
गज नाइक प्रभु चाल, गयंदनी – गति बृषभानु किसोरी ।।
नील निचोल जुवती, मोहन पट – पीत अरुन सिर खोरी
( जै श्री ) हित हरिवंश रसिक राधा पति, सूरत रंग में बोरी ।।9।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 10

आजु नागरी किसोर, भाँवती विचित्र जोर,
कहा कहौं अंग अंग परम माधुरी ।
करत केलि कंठ मेलि बाहु दंड गंड – गंड,
परस, सरस रास लास मंडली जुरी ।।
स्याम – सुंदरी विहार, बाँसुरी मृदंग तार,
मधुर घोष नूपुरादि किंकिनी चुरी ।
(जै श्री)देखत हरिवंश आलि, निर्तनी सुघंग चलि,
वारी फेरी देत प्राँन देह सौं दुरी।।10।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 11

मंजुल कल कुंज देस, राधा हरि विसद वेस, राका नभ कुमुद  बंधु, सरद जामिनी 
सांँवल दुति कनक अंग, विहरत मिलि एक संग ;नीरद मनी नील मध्य, लसत दामिनी ।।
अरुन पीत नव दुकुल, अनुपम अनुराग मूल ; सौरभ जुत सीत अनिल, मंद गामिनी ।
किसलय दल रचित सैन, बोलत पिय चाटु बैंन ; मान सहित प्रति पद, प्रतिकूल कामिनी ।।
मोहन मन मथत मार, परसत कुच नीवी हार ; येपथ जुत नेति – नेति, बदति भामिनी ।
“नरवाहन” प्रभु सुकेलि, वहु विधि भर, भरत झेलि, सौरत रस रूप नदी जगत पावनी ।।11।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 12

चलहि राधिके सुजान, तेरे हित सुख निधान ; रास रच्यौ स्याम तट कलिंद नंदिनी 
निर्तत जुवती समूह, राग रंग अति कुतूह ; बाजत रस मूल मुरलिका अनन्दिनी ।।
बंसीवट निकट जहाँ, परम रमनि भूमि तहाँ ; सकल सुखद मलय बहै वायु मंदिनी ।
जाती ईषद बिकास, कानन अतिसै सुवास ; राका निसि सरद मास, विमल चंदिनि ।।
नरवाहन प्रभु निहारी, लोचन भरि घोष नारि, नख सिख सौंदर्य काम दुख निकंदिनी ।
विलसहि भुज ग्रीव मेलि भामिनि सुख सिंधु झेलि ; नव निकुंज स्याम केलि जगत बंदिनी।।12।।

*श्रीहित राधाबल्लभो जयति* | * श्रीहित हरिवंश चन्द्रो जयति*

| Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 1 To 12 End |

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