Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 13 To 24 : श्री हित चौरासी जी | श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 13 से 24 Hindi Lyrics 

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Shrijidham.com और @shrijidham Youtube Channel आज आपको श्री हित चौरासी पद संख्या 13 से 24(Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 13 To 24) के बारे में जानकारी देगा जिसे पढ़ कर या सीख कर राधावल्लभ श्री हरिवंश नाम कीर्तन कर राधावल्लभ तक का मार्ग आसान होगा और उनकी प्राप्ति होगी। हमारा एकमात्र उद्देश्य आपको पवित्र भूमि के हर हिस्से का आनंद लेने देना है, और ऐसा करने में, हम और हमारी टीम आपको वृंदावन के सर्वश्रेष्ठ के बारे में सूचित करने के लिए तैयार हैं।

Shri Hit Chaurasi JI Pad Sankhya 13 To 24 | श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 13

Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 13 To 24

नंद के लाल हरयौं मन मोर  हौं अपने मोतिनु लर पोवति, काँकरी डारि गयो सखि भोर ।।
बंक बिलोकनि चाल छबीली, रसिक सिरोमनि नंद किसोर । कहि कैसें मन रहत श्रवन सुनि, सरस मधुर मुरली की घोर ।। इंदु गोबिंद वदन के कारन, चितवन कौं भये नैंन चकोर ।
(जै श्री )हित हरिवंश रसिक रस जुवती तू लै मिलि सखि प्राण अँकोर ।।13।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 14

अधर अरुन तेरे कैसे कैं दुराऊँ ?
रवि ससि संक भजन किये अपबस, अदभुत रंगनि कुसुम बनाऊँ ||
सुभ कौसेय कसिव कौस्तुभ मनि, पंकज सुतनि लेे अंगनि लुपाऊँ |
हरषित इंदु तजत जैसे जलधर, सो भ्रम ढूँढि कहाँ हों पाऊँ ||
अंबु न दंभ कछू नहीं व्यापत, हिमकर तपे ताहि कैसे कैं बुझाऊँ |
(जै श्री) हित हरिवंश रसिक नवरँग पिय भृकुटि भौंह तेरे खंजन लराऊँ।।14।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 15

अपनी बात मोसौं कहि री भामिनी,औंगी मौंगी रहति गरब की माती |
हों तोसों कहत हारी सुनी री राधिका प्यारी निसि कौ रंग क्यों न कहति लजाती ||
गलित कुसुम बैंनी सुनी री सारँग नैंनी, छूटी लट, अचरा वदति, अरसाती |
अधर निरंग रँग रच्यौ री कपोलनि, जुवति चलति गज गति अरुझाती ||
रहसि रमी छबीले रसन बसन ढीले, सिथिल कसनि कंचुकी उर राती ||
सखी सौं सुनी श्रावन बचन मुदित मन, चलि हरिवंश भवन मुसिकाती।।15।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 16

आज मेरे कहैं चलौ मृगनैंनी |
गावत सरस जुबति मंडल में, पिय सौं मिलैं पिक बैंनी||
परम प्रवीन कोक विद्या में, अभिनय निपुन लाग गति लैंनी |
रूप रासि सुनी नवल किसोरी, पलु पलु घटति चाँदनी रैंनी ||
(जै श्री ) हित हरिवंश चली अति आतुर, राधा रमण सुरत सुख दैंनी|
रहसि रभसि आलिंगन चुंबन, मदन कोटि कुल भई कुचैंनी ।16।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 17

आजु देखि व्रज सुन्दरी मोहन बनी केलि |
अंस अंस बाहु दै किसोर जोर रूप रासि, मनौं तमाल अरुझि रही सरस कनक बेलि ||
नव निकुंज भ्रमर गुंज, मंजु घोष प्रेम पुंज, गान करत मोर पिकनि अपने सुर सौं मेलि |
मदन मुदित अंग अंग, बीच बीच सुरत रंग, पलु पलु हरिवंश पिवत नैंन चषक झेलि।।17।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 18

सुनि मेरो वचन छबीली राधा | तैं पायौ रस सिंधु अगाधा ||
तूँ वृषवानु गोप की बेटी | मोहनलाल रसिक हँसि भेंटी ||
जाहि विरंचि उमापति नाये | तापै तैं वन फूल बिनाये ||
जौ रस नेति नेति श्रुति भाख्यौ | ताकौ तैं अधर सुधा रस चाख्यौ ||
तेरो रूप कहत नहिं आवै | (जै श्री) हित हरिवंश कछुक जस गावै ।।18।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 19

खेलत रास रसिक ब्रजमंडन | जुवतिन अंस दियें भुज दंडन ||
सरद विमल नभ चंद विराजै | मधुर मधुर मुरली कल बाजै ||
अति राजत घन स्याम तमाला | कंचन वेलि बनीं ब्रज बाला ||
बाजत ताल मृदंग उपंगा | गान मथत मन कोटि अनंगा ||
भूषन बहुत विविध रँग सारी | अंग सुघंग दिखावतिं नारी ||
बरषत कुसुम मुदित सुर जोषा | सुनियत दिवि दुंदुभि कल घोषा ||
(जै श्री) हित हरिवंश मगन मन स्यामा | राधा रमन सकल सुख धामा || 19 ||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 20

मोहनलाल के रस माती | बधू गुपति गोवति कत मोसौं, प्रथम नेह सकुचाती ||
देखी सँभार पीत पट ऊपर कहाँ चूनरी राती |
टूटी लर लटकति मोतिनु की नख विधु अंकित छाती ||
अधर बिंब खंडित, मषि मंडित गंड, चलति अरुझाती |
अरुन नैंन घुँमत आलस जुत कुसुम गलित लट पाती ||
आजु रहसि मोंहन सब लूटी विविध, आपनी थाती |
(जै श्री) हित हरिवंश वचन सुनी भामिनि भवन चली मुसकाती ||20||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 21

तेरे नैंन करत दोउ चारी |
अति कुलकात समात नहीं कहुँ मिले हैं कुंज विहारी ||
विथुरी माँग कुसुम गिरि गिरि परैं, लटकि रही लट न्यारी |
उर नख रेख प्रकट देखियत हैं, कहा दुरावति प्यारी ||
परी है पीक सुभग गंडनि पर, अधर निरँग सुकुमारी |
(जै श्री) हित हरिवंश रसिकनी भामिनि, आलस अँग अँग भारी ||21||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 22

नैंननिं पर वारौं कोटिक खंजन |
चंचल चपल अरुन अनियारे, अग्र भाग बन्यौ अंजन ||
रुचिर मनोहर बंक बिलोकनि, सुरत समर दल गंजन |
(जै श्री)हित हरिवंश कहत न बनै छबि, सुख समुद्र मन रंजन || 22||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 23

राधा प्यारी तेरे नैंन सलोल |
तौं निजु भजन कनक तन जोवन, लियौ मनोहर मोल ||
अधर निरंग अलक लट छूटी, रंजित पीक कपोल |
तूँ रस मगन भई नहिं जानत, ऊपर पीत निचोल ||
कुच जुग पर नख रेख प्रकट मानौं,संकर सिर ससि टोल |
(जै श्री) हित हरिवंश कहत कछू भामिनि, अति आलस सौं बोल || 23 ||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 24

आजु गोपाल रास रस खेलत, पुलिन कलपतरु तीर री सजनी |
सरद विमल नभ चंद विराजत, रोचक त्रिविध समीर री सजनी ||
चंपक बकुल मालती मुकुलित, मत्त मुदित पिक कीर री सजनी |
देसी सुघंग राग रँग नीकौ, ब्रज जुवतिनु की भीर री सजनी ||
मघवा मुदित निसान बजायौ, व्रत छाँड़यौ मुनि धीर री सजनी |
(जै श्री)हित हरिवंश मगन मन स्यामा, हरति मदन घन पीर री सजनी || 24 ||

| Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 13 To 24 End |

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श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 25 से 36

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श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 49 से 60

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 61 से 72

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 73 से 84

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