Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 25 To 36 : श्री हित चौरासी जी II श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 25 से 36 Hindi Lyrics 

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Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 25 To 36 | श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 25

Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 25 To 36

आजू निकी बनी श्री राधिका नागरी
ब्रज जुवति जूथ में रूप अरु चतुरई, सील सिंगार गुन सबनितें आगरी ||
कमल दक्षिण भुजा बाम भुज अंस सखि, गाँवती सरस मिलि मधुर सुर राग री |
सकल विद्या विदित रहसि ‘हरिवंश हित’, मिलत नव कुंज वर स्याम बड़ भाग री || 25 ||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 26

मोहनी मदन गोपाल की बाँसुरी |
माधुरी श्रवन पुट सुनत सुनु राधिके, करत रतिराज के ताप कौ नासुरी ||
सरद राका रजनी विपिन वृंदा सजनि, अनिल अति मंद सीतल सहित बासु री |
परम पावन पुलिन भृंग सेवत नलिन, कल्पतरु तीर बलवीर कृत रासु री ||
सकल मंडल भलीं तुम जु हरि सौं मिलीं, बनी वर वनित उपमा कहौं कासु री |
तुम जु कंचन तनी लाल मरकत मनी, उभय कल हंस ‘हरिवंश’ बलि दासुरी || 26 ||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 27

मधुरितु वृन्दावन आनन्द  थोर | राजत नागरि नव कुसल किशोर ||
जूथिका जुगल रूप मञ्जरी रसाल | विथकित अलि मधु माधवी गुलाल ||
चंपक बकुल कुल विविध सरोज | केतकि मेदनि मद मुदित मनोज ||
रोचक रुचिर बहै त्रिविध समीर | मुकुलित नूत नदित पिक कीर ||
पावन पुलिन घन मंजुल निकुंज | किसलय सैन रचित सुख पुंज ||
मंजीर मुरज डफ मुरली मृदंग | बाजत उपंग बीना वर मुख चंग ||
मृगमद मलयज कुंकुम अबीर | बंदन अगरसत सुरँगित चीर ||
गावत सुंदरी हरी सरस धमारि | पुलकित खग मृग बहत न वारि ||
(जै श्री) हित हरिवंश हंस हंसिनी समाज | ऐसे ही करौ मिलि जुग जुग राज || 27 ||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 28

राधे देखि वन की बात |
रितु बसंत अनंत मुकुलित कुसुम अरु फल पात ||
बैंनू धुनि नंदलाल बोली, सुनिव क्यौं अर सात |
करत कतव विलंब भामिनि वृथा औसर जात ||
लाल मरकत मनि छबीलौ तुम जु कंचन गात |
बनी (श्री) हित हरिवंश जोरी उभै गुन गन मात || 28 ||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 29

ब्रज नव तरुनी कदंब मुकुट मनि स्यामा आजु बनी |
नख सिख लौं अंग अंग माधुरी मोहे स्याम धनी||
यौं राजत कबरी गुंथित कच कनक कंज वदनी |
चिकुर चंद्रिकनि बीच अरध बिधु मानौं ग्रसित फनी ||
सौभग रस सिर स्त्रवत पनारी पिय सीमंत ठनी |
भृकुटि काम कोदंड नैंन सर कज्जल रेख अनी ||
तरल तिलक तांटक गंड पर नासा जलज मनी |
दसन कुंद सरसाधर पल्लव प्रीतम मन समनी ||
चिबुक मध्य अति चारु सहज सखि साँवल बिंदु कनी |
प्रीतम प्रान रतन संपुट कुच कंचुकि कसिब तनी ||
भुज मृनाल वल हरत वलय जुत परस सरस श्रवनी |
स्याम सीस तरु मनौं मिडवारी रची रुचिर रवनी ||
नाभि गम्भीर मीन मोहन मन खेलत कौं हृदनी |
कृस कटि पृथु नितंब किंकिनि वृत कदलि खंभ जघनी ||
पद अंबुज जावक जुत भूषन प्रीतम उर अवनी |
नव नव भाइ विलोभि भाम इभ विहरत वर कारिनी ||
(जै श्री) हित हरिवंश प्रसंसिता स्यामा कीरति विसद घनी |
गावत श्रवननि सुनत सुखाकर विस्व दुरित दवनी || 29 ||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 30

देखत नव निकुंज सुनु सजनी लागत है अति चारु |
माधविका केतकी लता ले रच्यौ मदन आंगारु ||
सरद मास राका निसि सीतल मंद सुगंध समीर|
परिमल लुब्ध मधुव्रत विथकित नदित कोकिला कीर||
वहु विध रङ्ग मृदुल किसलय दल निर्मित पिय सखि सेज |
भाजन कनक विविध मधु पूरित धरे धरनी पर हेज ||
तापर कुसल किसोर किसोरी करत हास परिहास |
प्रीतम पानि उरज वर परसत प्रिया दुरावति वास ||
कामिनि कुटिल भृकुटि अवलोकत दिन प्रतिपद प्रतिकूल |
आतुर अति अनुराग विवस हरि धाइ धरत भुज मूल ||
नगर नीवी बन्धन मोचत एंचत नील निचोल |
बधू कपट हठ कोपि कहत कल नेति नेति मधु बोल ||
परिरंभन विपरित रति वितरत सरस सुरत निजु केलि |
इंद्रनील मनिनय तरु मानौं लसन कनक की बेली ||
रति रन मिथुन ललाट पटल पर श्रम जल सीकर संग |
ललितादिक अंचल झकझोरति मन अनुराग अभंग ||
(जै श्री) हित हरिवंश जथामति बरनत कृष्ण रसामृत सार |
श्रवन सुनत प्रापक रति राधा पद अंबुज सुकुमार||30||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 31

आजु अति राजत दम्पति भोर |
सुरत रंग के रस में भीनें नागरि नवल किशोर ||
अंसनि पर भुज दियें विलोकत इंदु वदन विवि ओर |
करत पान रस मत्त परसपर लोचन तृषित चकोर ||
छूटी लटनि लाल मन करष्यौ ये याके चित चोर |
परिरंभन चुंबन मिलि गावत सुर मंदर कल घोर ||
पग डगमगत चलत बन विहरन रुचिर कुंज घन खोर |
(जै श्री) हित हरिवंश लाल ललना मिलि हियौ सिरावत मोर ||31||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 32

आजु बन क्रीडत स्यामा स्याम ||
सुभग बनी निसि सरद चाँदनी, रुचिर कुंज अभिराम ||
खंडत अधर करत पारिरंभन, ऐचत जघन दुकूल |
उर नख पात तिरीछी चितवन, दंपति रस सम तूल ||
वे भुज पीन पयोधर परसत, वाम दृशा पिय हार |
वसननि पीक अलक आकरषत, समर श्रमित सत मार ||
पलु पलु प्रवल चौंप रस लंपट, अति सुंदर सुकुमार |
(जै श्री) हित हरिवंश आजु तृन टूटत हौं बलि विसद विहार ||32||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 33

आजु बन राजत जुगल किसोर |
नंद नँदन वृषभानु नंदिनी उठे उनीदें भोर ||
डगमगात पग परत सिथिल गति परसत नख ससि छोर |
दसन बसन खंडित मषि मंडित गंड तिलक कछु थोर||
दुरत न कच करजनि के रोकें अरुन नैन अलि चोर |
(जै श्री) हित हरिवंश सँभार न तन मन सुरत समुद्र झकोर ||33||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 34

बन की कुंजनि कुंजनि डोलनि |
निकसत निपट साँकरी बीथिनु, परसत नाँहि निचोलनि ||
प्रात काल रजनी सब जागे, सूचत सुख दृग लोलनि |
आलसवंत अरुन अति व्याकुल, कछु उपजत गति गोलनि ||
निर्तनि भृकुटि वदन अंबुज मृदु, सरस हास मधु बोलनि |
अति आसक्त लाल अलि लंपट, बस कीने बिनु मोलनि ||
विलुलित सिथिल श्याम छूटी लट, राजत रुचिर कपोलनि |
रति विपरित चुंबन परिरंभन, चिबुक चारु टक टोलनि ||
कबहुँ श्रमित किसलय सिज्या पर, मुख अंचल झकझोलनि |
दिन हरिवंश दासि हिय सींचत, वारिधि केलि कलोलनि ||34||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 35

झूलत दोऊ नवल किसोर |
रजनी जनित रंग सुख सुचत अंग अंग उठि भोर ||
अति अनुराग भरे मिलि गावत सुर मंदर कल घोर |
बीच बीच प्रीतम चित चोरति प्रिया नैंन की कोर ||
अबला अति सुकुमारि डरत मन वर हिंडोर झँकोर|
पुलकि पुलकि प्रीतम उर लागति दे नव उरज अँकोर||
अरुझी विमल माल कंकन सौं कुंडल सौं कच डोर |
वेपथ जुत क्यों बनै विवेचत आनँद बढ़यौ न थोर ||
निरखि निरखि फूलतीं ललितादिक विवि मुख चंद चकोर |
दे असीस हरिवंश प्रसंसत करि अंचल की छोर ||35||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 36

आजु बन नीकौ रास बनायौ |
पुलिन पवित्र सुभग जमुना तट मोहन बैंनु बजायौ ||
कल कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि खग मृग सचु पायौ |
जुवतिनु मंडल मध्य स्याम घन सारँग राग जमायौ ||
ताल मृदङ्ग उपंग मुरज डफ मिलि रससिंधु बढ़ायौ |
विविध विशद वृषभानु नंदिनी अंग सुघंग दिखायौ ||
अभिनय निपुन लटकि लट लोचन भृकुटि अनंग नचायौ |
ताता थेई ताथेई धरत नौतन गति पति ब्रजराज रिझायौ ||
सकल उदार नृपति चूड़ामनि सुख वारिद वरषायौ |
परिरंभन चुंबन आलिंगन उचित जुवति जन पायौ ||
वरसत कुसुम मुदित नभ नाइक इन्द्र निसान बजायौ |
(जै श्री) हित हरिवंश रसिक राधा पति जस वितान जग छायौ || 36 ||

| Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 25 To 36 End |

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श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 1 से 12

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 13 से 24

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 37 से 48

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 49 से 60

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 61 से 72

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 73 से 84

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