Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 37 To 48 : श्री हित चौरासी जी II श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 37 से 48 Hindi Lyrics 

5/5 - (1 vote)

Shrijidham.com और @shrijidham Youtube Channel आज आपको श्री हित चौरासी पद संख्या 37 से 48(Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 37 To 48) के बारे में जानकारी देगा जिसे पढ़ कर या सीख कर राधावल्लभ श्री हरिवंश नाम कीर्तन कर राधावल्लभ तक का मार्ग आसान होगा और उनकी प्राप्ति होगी। हमारा एकमात्र उद्देश्य आपको पवित्र भूमि के हर हिस्से का आनंद लेने देना है, और ऐसा करने में, हम और हमारी टीम आपको वृंदावन के सर्वश्रेष्ठ के बारे में सूचित करने के लिए तैयार हैं।

Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 37 To 48 | श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 37

Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 37 To 48

चलहि किन मानिनि कुंज कुटीर।
तो बिनु कुँवरि कोटि बनिता जुत, मथत मदन की पीर।।
गदगद सुर विरहाकुल पुलकित, स्रवत विलोचन नीर।
क्वासि क्वासि वृषभानु नंदिनी, विलपत विपिन अधीर।।
बंसी विसिख, व्याल मालावलि, पंचानन पिक कीर।
मलयज गरल, हुतासन मारुत, साखा मृग रिपु चीर ।।
(जै श्री) हित हरिवंश परम कोमल चित, चपल चली पिय तीर।
सुनि भयभीत बज को पंजर, सुरत सूर रन वीर ।।37।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 38

चलहि उठि गहरु करति कत, निकुंज बुलावत लाल |
हा राधा राधिका पुकारत, निरखि मदन गज ढाल ||
करत सहाइ सरद ससि मारुत, फुटि मिली उर माल |
दुर्गम तकत समर अति कातर, करहि न पिय प्रतिपाल ||
(जै श्री) हित हरिवंश चली अति आतुर, श्रवन सुनत तेहि काल |
लै राखे गिरि कुच बिच सुंदर, सुरत – सूर ब्रज बाल || 38 ||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 39

खेल्यो लाल चाहत रवन |
रचि रचि अपने हाथ सँवारयौ निकुंज भवन ||
रजनी सरद मंद सौरभ सौं सीतल पवन |
तो बिनु कुँवरि काम की बेदन मेटब कवन ||
चलहि न चपल बाल मृगनैनी तजिब मवन |
(जै श्री) हित हरिवंश मिलब प्यारे की आरति दवन ||39||.

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 40

बैठे लाल निकुंज भवन |
रजनी रुचिर मल्लिका मुकुलित त्रिविध पवन ||
तूँ सखी काम केलि मन मोहन मदन दवन |
वृथा गहरु कत करति कृसोदरी कारन कवन ||
चपल चली तन की सुधि बिसरी सुनत श्रवन |
(जै श्री) हित हरिवंश मिले रस लंपट राधिका रवन ||40||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 41

प्रीति की रीति रंगिलोइ जानै |
जद्यपि सकल लोक चूड़ामनि दीन अपनपौ मानै ||
जमुना पुलिन निकुंज भवन में मान मानिनी ठानै |
निकट नवीन कोटि कामिनि कुल धीरज मनहिं न आनै ||
नस्वर नेह चपल मधुकर ज्यों आँन आँन सौं बानै |
(जै श्री) हित हरिवंश चतुर सोई लालहिं छाड़ि मैंड पहिचानै ||41||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 42

प्रीति  काहु की कानि बिचारै |
मारग अपमारग विथकित मन को अनुसरत निवारै ||
ज्यौं सरिता साँवन जल उमगत सनमुख सिंधु सिधारै |
ज्यौं नादहि मन दियें कुरंगनि प्रगट पारधी मारै ||
(जै श्री) हित हरिवंश हिलग सारँग ज्यौं सलभ सरीरहि जारै |
नाइक निपून नवल मोहन बिनु कौन अपनपौ हारै ||42||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 43

अति नागरि वृषभानु किसोरी |
सुनि दूतिका चपल मृगनैनी, आकरषत चितवन चित गोरी ||
श्रीफल उरज कंचन सी देही, कटि केहरि गुन सिंधु झकोरी |
बैंनी भुजंग चन्द्र सत वदनी, कदलि जंघ जलचर गति चोरी ||
सुनि ‘हरिवंश’ आजु रजनी मुख, बन मिलाइ मेरी निज जोरी |
जद्यपि मान समेत भामिनी, सुनि कत रहत भली जिय भोरी ||43||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 44

चलि सुंदरि बोली वृंदावन |
कामिनि कंठ लागि किन राजहि, तूँ दामिनि मोहन नौतन घन ||
कंचुकी सुरंग विविध रँग सारी, नख जुग ऊन बने तरे तन ||
ये सब उचित नवल मोहन कौं, श्रीफल कुच जोवन आगम धन ||
अतिसै प्रीति हुती अंतरगत, (जैश्री) हित हरिवंश चली मुकुलित मन |
निविड़ निकुंज मिले रस सागर, जीते सत रति राज सुरत रन ||44||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 45

आवति श्रीवृषभानु दुलारी |
रूप रासि अति चतुर सिरोमनि अंग अंग सुकुमारी ||
प्रथम उबटि मज्जन करि सज्जित नील बरन तन सारी |
गुंथित अलक तिलक कृत सुंदर सैंदूर माँग सँवारी ||
मृगज समान नैंन अंजन जुत रुचिर रेख अनुसारी |
जटित लवंग ललित नासा पर दसनावलि कृत कारी ||
श्रीफल उरज कँसूभी कंचुकि कसि ऊपर हार छबि न्यारी |
कृस कटि उदर गँभीर नाभि पुट जघन नितंबनि भारी ||
मनौं मृनाल भूषन भूषित भुज स्याम अंस पर डारी |
(जै श्री) हित हरिवंश जुगल करिनी गज विहरत वन पिय प्यारी ||45||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 46

विपिन घन कुंज रति केलि भुज मेलि रूचि,
स्याम स्यामा मिले सरद की जमिनी |
हृदै अति फूल समतूल पिय नागरी,
करिनि करि मत्त मनौं विवध गुन रामिनी ||
सरस गति हास परिहास आवेस बस,
दलित दल मदन बल कोक रस कामिनी |
(जै श्री) हित हरिवंश सुनि लाल लावन्य भिदे,
प्रिया अति सूर सुख सुरत संग्रामिनी ||46||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 47

वन की लीला लालहिं भावै |
पत्र प्रसून बीच प्रतिबिंबहिं नख सिख प्रिया जनावै ||
सकुच न सकत प्रकट परिरंभन अलि लंपट दुरि धावै |
संभ्रम देति कुलकि कल कामिनि रति रन कलह मचावै ||
उलटी सबै समझि नैंननि में अंजन रेख बनावै |
(जै श्री) हित हरिवंश प्रीति रीति बस सजनी स्याम कहावै ||47||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 48

बनी वृषभानु नंदिनी आजु |
भूषन वसन विविध पहिरे तन पिय मोहन हित साजु ||
हाव भाव लावन्य भृकुटि लट हरति जुवति जन पाजु |
ताल भेद औघर सुर सूचत नूपुर किंकिनि बाजु ||
नव निकुंज अभिराम स्याम सँग नीकौ बन्यौ समाजु |
(जै श्री) हित हरिवंश विलास रास जुत जोरी अविचल राजु ||48||

| Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 37 To 48 End |

यह भी पढ़े: 

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 1 से 12

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 13 से 24

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 25 से 36

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 49 से 60

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 61 से 72

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 73 से 84

Radhe Radhe Share Plz:

ShrijiDham.com श्री जी धाम वेबसाइट के द्वार भगतो को अच्छी और सही जानकारी दी जाती है अगर हमसे कोई गलती हुई हो तो कृपया मुझे कमेंट करें बता दें ताकि हम उसे सही केर दे सकें और कृपया इसे शेयर करें ताकि और भगतो की भी मदद हो सके धन्यवाद राधे राधे