Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 73 To 84 : श्री हित चौरासी जी II श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 73 से 84 Hindi Lyrics 

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Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 73 To 84 | श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 73

Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 73 To 84

खंजन मीन मृगज मद मेंटत, कहा कहौं नैननिं की बातैं।
सनी सुंदरी कहाँ लौं सिखईं, मोहन बसीकरन की घातैं।
बंक निसंक चपल अनियारे, अरुन स्याम सित रचे कहाँ तैं।
डरत न हरत परयौ सर्वसु मृदु मधुमिव मादिक दृग पातैं॥
नैंकु प्रसन्न दृष्टि पूरन करि, नहिं मोतन चितयौ प्रमदा तैं।
(जै श्री) हित हरिवंश हंस कल गामिनि, भावै सो करहु प्रेम के नातैं।।73।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 74

काहे कौं मान बढ़ावतु है बालक मृग लोचनि।
हौंब डरनि कछु कहि न सकति इक बात सँकोचनी ।
मत्त मुरली अंतर तव गावत जागृत सैंन तवाकृति सोचनि।
(जै श्री) हित हरिवंश महा मोहन पिय आतुर विट विरहज दुख मोचनि ।।74।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 75

हौं जु कहति इक बात सखी, सुनि काहे कौं डारत?
प्रानरमन सौं क्यौंऽब करत, आगस बिनु आरत।।
पिय चितवत तुव चंद वदन तन, तूँ अधमुख निजु चरन निहारति।
वे मृदु चिबुक प्रलोइ प्रबोधत, तूँ भामिनि कर सौं कर टारति।।
विबस अधीर विरह अति कतर सर औसर कछुवै न विचारति।
(जै श्री) हित हरिवंश रहसि प्रीतम मिलि, तृषित नैंन काहे न प्रतिपारति||75||

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 76

नागरीं निकुंज ऐंन किसलय दल रचित सैंन,
कोक कला कुसल कुँवरि अति उदार री।
सुरत रंग अंग अंग हाव भाव भृकुटि भंग,
माधुरी तरंग मथत कोटि मार री।
मुखर नूपुरनि सुभाव किंकनी विचित्र राव,
विरमि विरमि नाथ वदत वर विहार री।
लाड़िली किशोर राज हंस हंसिनी समाज,
सींचत हरिवंश नैंन सुरस सार री।।76।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 77

लटकति फिरति जुवति रस फूली।
लता भवन में सरस सकल निसि, पिय सँग सुरत हिंडोरे झूली।।
जद्दपि अति अनुराग रसासव पान विवस नाहिंन गति भूली।
आलस वलित नैंन विगलित लट, उर पर कछुक कंचुकी खूली।।
मरगजी माल सिथिल कटि बंधन, चित्रित कज्जल पीक दुकूली।
(जै श्री) हित हरिवंश मदन सर जरजर , विथकित स्याम सँजीवन मूली।।77।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 78

सुधंग नाचत नवल किसोरी।
थेई थेई कहति चहति प्रीतम दिसि, वदन चंद मनौं त्रिषित चकोरी।।
तान बंधान मान में नागरि देखत स्याम कहत हो हो होरी।
(जै श्री) हित हरिवंश माधुरी अँग अँग, बरवस लियौ मोहन चित चोरी।।78।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 79

रहसि रहसि मोहन पिय के संग री, लड़ैती अति रस लटकति।
सरस सुधंग अंग में नागरि, थेई थेई कहति अवनि पद पटकति।।
कोक कला कुल जानि सिरोमनि, अभिनय कुटिल भृकुटियनि मटकति।
विवस भये प्रीतम अलि लंपट, निरखि करज नासा पुट चटकति ॥
गुन गनु रसिक राइ चूड़ामनि रिझवति पदिक हार पट झटकति।
(जै श्री) हित हरिवंश निकट दासीजन, लोचन चषक रसासव गटकति।।79।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 80

वल्लवी सु कनक वल्लरी तमाल स्याम संग,
लागि रही अंग अंग मनोभिरामिनी।
वदन जोति मनौं मयंक अलका तिलक छबि कलंक,
छपति स्याम अंक मनौं जलद दामिनी।।
विगत वास हेम खंभ मनौं भुवंग वैनी दंड,
पिय के कंठ प्रेम पुंज कुंज कामिनी।
(जै श्री) सोभित हरिवंश नाथ साथ सुरत आलस वंत,
उरज कनक कलस राधिका सुनामिनी।।80।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 81

वृषभानु नंदिनी मधुर कल गावै।
विकट औंघर तान चर्चरी ताल सौं, नंदनंदन मनसि मोद उपजावै।।
प्रथम मज्जन चारु चीर कज्जल तिलक, श्रवण कुंडल वदन चंदनि लजावै।
सुभग नकबेसरी रतन हाटक जरी, अधर बंधूक दसन कुंद चमकावै।।
वलय कंकन चारु उरसि राजत हारु, कटिव किंकिनी चरन नूपुर बजावै।
हंस कल गामिनी मथति मद कामिनी, नखनि मदयंतिका रंग रुचि द्यावे ।।
निर्त्त सागर रभसि रहसि नागरि नवल, चंद चाली विविध भेदनि जनावै।
कोक विद्या विदित भाइ अभिनय निपुन, भू विलासनि मकर केतनि नचावै।।
निविड़ कानन भवन बाहु रंजित रवन, सरस आलाप सुख पुंज बरसावै।
उभै संगम सिंधु सुरत पूषन बधु, द्रवत मकरंद हरिवंश अली पावै।।81।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 82

नागरता की राशि किसोरी।
नव नागर कुल मौलि साँवरी, वर बस कियो चितै मुख मोरी।।
रूप रुचिर अंग अंग माधुरी, विनु भूषन भूषित ब्रज गोरी।
छिन छिन कुसल सुधंग अंग में, कोक रमस रस सिंधु झकोरी।
चंचल रसिक मधुप मौंहन मन. राखे कनक कमल कुच कोरी।
प्रीतम नैंन जुगल खंजन खग, बाँधे विविध निबंध डोरी।
अवनी उदर नाभि सरसी में, मनौं कछुक मदिक मधु घोरी।
(जै श्री) हित हरिवंश पिवत सुंदर वर, सींव सुदृढ़ निगमनि की तोरी।।82।।

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 83

छाँड़िदैं मानिनी मान मन धरिबौ।
प्रनत सुंदर सुघर प्रानवल्लभ नवल,
वचन आधीन सौं इतौ कत करिबौं। ।
जपत हरि विवस तव नाम प्रतिपद विमल,

मनसि तव ध्यान ते निमिष नहिं टरिबौ।
घटति पलु पलु सुभग सरद की जामीनी,
भामिनी सरस अनुराग दिसि ढरिबौ।।
हौं जु कहति निजु बात सुनो मनि सखि,
सुमुखि बिनु काज घन विरह दुख भरी वै।
मिलत हरिवंश हित’ कुंज किसलय सयन,
करत कल केलि सुख सिंधु में तिरिबौ।।83॥

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 84

आजुब देखियत है हो प्यारी रंग भरी।
मोपै न दुरति चोरी वृषभानु की किशोरी;
सिथिल कटि की डोरी,नंद के लालन सौं सुरत लरी।।
मोतियन लर टूटी चिकुर चंद्रिका छूटी
रहसि रसिक लूटी गंडनि पीक परी।
नैननि आलस बस अधर बिंब निरस;
पुलक प्रेम परस हित हरिवंश री राजत खरी।।84||

| Shri Hit Chaurasi Ji Pad Sankhya 73 To 84 End |

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श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 37 से 48

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 49 से 60

श्री हित चतुरासी जी पद संख्या 61 से 72

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