सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ (दोहा 11 – दोहा 15) | Sunderkand Ke Dohe 11 To 15 | सुंदरकांड के 60 दोहे

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Sunderkand Ke Dohe 11 To 15 सुन्दरकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। सुन्दरकाण्ड में हनुमान का लंका प्रस्थान, लंका दहन से लंका से वापसी तक के घटनाक्रम आते हैं। ShrijiDham

श्री राम चरित मानस-सुन्दरकाण्ड (दोहा 11 – दोहा 15)

Sunderkand Ke Dohe 11 To 15

Sunderkand Ke Dohe 11 To 15 ॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 11 ॥

जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच, मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

त्रिजटा सन बोलीं कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी॥

तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसह बिरहु अब नहिं सहि जाई॥

आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई॥

सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी॥

सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि॥

निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी॥

कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। मिलिहि न पावक मिटिहि न सूला॥

देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा॥

पावकमय ससि स्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी॥

सुनहि बिनय मम बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका॥

नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना॥

देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 12 ॥

कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारि तब, जनु असोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर॥

चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥

जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई॥

सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना॥

रामचन्द्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥

लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥

श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कही सो प्रगट होति किन भाई॥

तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ॥

राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की॥

यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥

नर बानरहि संग कहु कैसें। कही कथा भइ संगति जैसें॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 13 ॥

कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास, जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी॥

बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयहु तात मो कहुँ जलजाना॥

अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी। अनुज सहित सुख भवन खरारी॥

कोमलचित कृपाल रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई॥

सहज बानि सेवक सुखदायक। कबहुँक सुरति करत रघुनायक॥

कबहुँ नयन मम सीतल ताता। होइहहिं निरखि स्याम मृदु गाता॥

बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी॥

देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता॥

मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता॥

जनि जननी मानह जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 14 ॥

रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर, अस कहि कपि गदगद भयउ भरे बिलोचन नीर।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

कहेउ राम बियोग तव सीता। मो कहुँ सकल भए बिपरीता॥

नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू। कालनिसा सम निसि ससि भानू॥

कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा। बारिद तपत तेल जनु बरिसा॥

जे हित रहे करत तेइ पीरा। उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा॥

कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई॥

तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा॥

सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतनेहि माहीं॥

प्रभु संदेसु सुनत बैदेही। मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही॥

कह कपि हृदयँ धीर धरु माता। सुमिरु राम सेवक सुखदाता॥

उर आनहु रघुपति प्रभुताई। सुनि मम बचन तजहु कदराई॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 15 ॥

निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु, जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

जौं रघुबीर होति सुधि पाई। करते नहिं बिलंबु रघुराई॥

राम बान रबि उएँ जानकी। तम बरुथ कहँ जातुधान की॥

अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई। प्रभु आयुस नहिं राम दोहाई॥

कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा॥

निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥

हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना। जातुधान अति भट बलवाना॥

मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्हि निज देहा॥

कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा॥

| Sunderkand Ke Dohe 11 To 15 End |

FaQs About Sunderkand Ke Dohe 11 To 15 End

सुंदरकांड में कितने अध्याय होते हैं?

सुंदरकांड, गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरितमानस के सात अध्यायों में से पांचवा अध्याय है।

सुंदरकांड का पाठ कब करते हैं?

यदि कोई व्यक्ति शनिवार को सुंदरकांड का पाठ करता है तो बजरंगबली प्रसन्न होकर अपना आशीर्वाद देते हैं, इससे उस व्यक्ति का शनिदेव भी बुरा नहीं करते.

सुंदरकांड की कौन सी चौपाई है?

सुंदरकांड की चौपाई, “यह संवाद जासु उर आवा रघुपति चरण भगत सोही पावा” में गोस्वामी तुलसीदास जी किस संवाद की बात कर रहे हैं

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