सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ (दोहा 16 – दोहा 20) | Sunderkand Ke Dohe 16 To 20 | सुंदरकांड के 60 दोहे

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Sunderkand Ke Dohe 16 To 20 सुन्दरकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। सुन्दरकाण्ड में हनुमान का लंका प्रस्थान, लंका दहन से लंका से वापसी तक के घटनाक्रम आते हैं। ShrijiDham

श्री राम चरित मानस-सुन्दरकाण्ड (दोहा 16 – दोहा 20)

Sunderkand Ke Dohe 16 To 20

Sunderkand Ke Dohe 16 To 20 ॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 16 ॥

सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल, प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी॥

आसिष दीन्हि राम प्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना॥

अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥

करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥

बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा॥

अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता॥

सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा॥

सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी॥

तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 17 ॥

देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु, रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥

रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥

नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी॥

खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥

सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥

सब रजनीचर कपि संघारे। गए पुकारत कछु अधमारे॥

पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला संग लै सुभट अपारा॥

आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 18 ॥

कछु मारेसि कछु मर्देसि कछु मिलएसि धरि धूरि, कछु पुनि जाइ पुकारे प्रभु मर्कट बल भूरि।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

सुनि सुत बध लंकेस रिसाना। पठएसि मेघनाद बलवाना॥

मारसि जनि सुत बाँधेसु ताही। देखिअ कपिहि कहाँ कर आही॥

चला इन्द्रजित अतुलित जोधा। बंधु निधन सुनि उपजा क्रोधा॥

कपि देखा दारुन भट आवा। कटकटाइ गर्जा अरु धावा॥

अति बिसाल तरु एक उपारा। बिरथ कीन्ह लंकेस कुमारा॥

रहे महाभट ताके संगा। गहि गहि कपि मर्दई निज अंगा॥

तिन्हहि निपाति ताहि सन बाजा। भिरे जुगल मानहुँ गजराजा॥

मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई। ताहि एक छन मुरुछा आई॥

उठि बहोरि कीन्हिसि बहु माया। जीति न जाइ प्रभंजन जाया॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 19 ॥

ब्रह्म अस्त्र तेहि साँधा कपि मन कीन्ह बिचार, जौं न ब्रह्मसर मानउँ महिमा मिटइ अपार।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

ब्रह्मबान कपि कहुँ तेहिं मारा। परतिहुँ बार कटकु संघारा॥

तेहिं देखा कपि मुरुछित भयऊ। नागपास बाँधेसि लै गयऊ॥

जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव बंधन काटहिं नर ग्यानी॥

तासु दूत कि बंध तरु आवा। प्रभु कारज लगि कपिहिं बँधावा॥

कपि बंधन सुनि निसिचर धाए। कौतुक लागि सभाँ सब आए॥

दसमुख सभा दीखि कपि जाई। कहि न जाइ कछु अति प्रभुताई॥

कर जोरें सुर दिसिप बिनीता। भृकुटि बिलोकत सकल सभीता॥

देखि प्रताप न कपि मन संका। जिमि अहिगन महुँ गरुड़ असंका॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 20 ॥

कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद, सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिसाद।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

कह लंकेस कवन तैं कीसा। केहि कें बल घालेहि बन खीसा॥

की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असंक सठ तोही॥

मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा॥

सुनु रावन ब्रह्मांड निकाया। पाइ जासु बल बिरचति माया॥

जाकें बल बिरंचि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा॥

जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समेत गिरि कानन॥

धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥

हर कोदंड कठिन जेहिं भंजा। तेहि समेत नृप दल मद गंजा॥

खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली॥

| Sunderkand Ke Dohe 16 To 20 End |

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