सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ (दोहा 36 – दोहा 40)| Sunderkand Ke Dohe 36 To 40 | सुंदरकांड के 60 दोहे

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Sunderkand Ke Dohe 36 To 40 सुन्दरकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। सुन्दरकाण्ड में हनुमान का लंका प्रस्थान, लंका दहन से लंका से वापसी तक के घटनाक्रम आते हैं। ShrijiDham

श्री राम चरित मानस-सुन्दरकाण्ड (दोहा 36 – दोहा 40)

Sunderkand Ke Dohe 36 To 40

Sunderkand Ke Dohe 36 To 40 ॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 36 ॥

राम बान अहि गन सरिस निकर निसाचर भेक, जब लगि ग्रसत न तब लगि जतनु करहु तजि टेक।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

श्रवन सुनी सठ ता करि बानी। बिहसा जगत बिदित अभिमानी॥

सभय सुभाउ नारि कर साचा। मंगल महुँ भय मन अति काचा॥

जौं आवइ मर्कट कटकाई। जिअहिं बिचारे निसिचर खाई॥

कंपहिं लोकप जाकीं त्रासा। तासु नारि सभीत बड़ि हासा॥

अस कहि बिहसि ताहि उर लाई। चलेउ सभाँ ममता अधिकाई॥

फमंदोदरी हृदयँ कर चिंता। भयउ कंत पर बिधि बिपरीता॥

बैठेउ सभाँ खबरि असि पाई। सिंधु पार सेना सब आई॥

बूझेसि सचिव उचित मत कहहू। ते सब हँसे मष्ट करि रहहू॥

जितेहु सुरासुर तब श्रम नाहीं। नर बानर केहि लेखे माहीं॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 37 ॥

सचिव बैद गुर तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

सोइ रावन कहुँ बनी सहाई। अस्तुति करहिं सुनाइ सुनाई॥

अवसर जानि बिभीषनु आवा। भ्राता चरन सीसु तेहिं नावा॥

पुनि सिरु नाइ बैठ निज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन॥

जौ कृपाल पूँछिहु मोहि बाता। मति अनुरूप कहउँ हित ताता॥

जो आपन चाहै कल्याना। सुजसु सुमति सुभ गति सुख नाना॥

सो परनारि लिलार गोसाईं। तजउ चउथि के चंद कि नाईं॥

चौदह भुवन एक पति होई। भूत द्रोह तिष्टइ नहिं सोई॥

गुन सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ न कोऊ॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 38 ॥

काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ, सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

तात राम नहिं नर भूपाला। भुवनेस्वर कालहु कर काला॥

ब्रह्म अनामय अज भगवंता। ब्यापक अजित अनादि अनंता॥

गो द्विज धेनु देव हितकारी। कृपा सिंधु मानुष तनुधारी॥

जन रंजन भंजन खल ब्राता। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता॥

ताहि बयरु तजि नाइअ माथा। प्रनतारति भंजन रघुनाथा॥

देहु नाथ प्रभु कहुँ बैदेही। भजहु राम बिनु हेतु सनेही॥

सरन गएँ प्रभु ताहु न त्यागा। बिस्व द्रोह कृत अघ जेहि लागा॥

जासु नाम त्रय ताप नसावन। सोइ प्रभु प्रगट समुझु जियँ रावन॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 39 ॥

बार बार पद लागउँ बिनय करउँ दससीस, परिहरि मान मोह मद भजहु कोसलाधीस॥(क)।

मुनि पुलस्ति निज सिष्य सन कहि पठई यह बात, तुरत सो मैं प्रभु सन कही पाइ सुअवसरु तात॥(ख)॥

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

माल्यवंत अति सचिव सयाना। तासु बचन सुनि अति सुख माना॥

तात अनुज तव नीति बिभूषन। सो उर धरहु जो कहत बिभीषन॥

रिपु उतकरष कहत सठ दोऊ। दरि न करहु इहाँ हइ कोऊ॥

माल्यवंत गह गयउ बहोरी। कहइ बिभीषनु पुनि कर जोरी॥

सुमति कुमति सब कें उर रहहीं। नाथ पुरान निगम अस कहहीं॥

जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ बिपति निदाना॥

तव उर कुमति बसी बिपरीता। हित अनहित मानहु रिपु प्रीता॥

कालराति निसिचर कुल केरी। तेहि सीता पर प्रीति घनेरी॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 40 ॥

तात चरन गहि मागउँ राखहु मोर दुलार, सीता देहु राम कहुँ अहित न होइ तुम्हारा।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

बुध पुरान श्रुति संमत बानी। कही बिभीषन नीति बखानी॥

सुनत दसानन उठा रिसाई। खल तोहिं निकट मृत्यु अब आई॥

जिअसि सदा सठ मोर जिआवा। रिपु कर पच्छ मूढ़ तोहि भावा॥

कहसि न खल अस को जग माहीं। भुज बल जाहि जिता मैं नाहीं॥

मम पुर बसि तपसिन्ह पर प्रीती। सठ मिलु जाइ तिन्हहि कहु नीती॥

अस कहि कीन्हेसि चरन प्रहारा। अनुज गहे पद बारहिं बारा॥

उमा संत कइ इहइ बड़ाई। मंद करत जो करइ भलाई॥

तुम्ह पितु सरिस भलेहिं मोहि मारा। रामु भजें हित नाथ तुम्हारा॥

सचिव संग लै नभ पथ गयऊ। सबहि सुनाइ कहत अस भयऊ॥

| Sunderkand Ke Dohe 36 To 40 End |

FaQs About Sunderkand Ke Dohe 36 To 40 End

सुंदरकांड को ऐसा क्यों कहा जाता है?

क्योंकि “सुंदर” शब्द का अर्थ सुंदर या अति सुंदर है, और “कांड” का अर्थ एक खंड या अध्याय से है।

सुंदरकांड का अर्थ क्या है?

हनुमान जी की कृपा से सभी तरह के दुख- दर्द दूर हो जाते हैं

सुंदरकांड को सुंदर क्यों कहा जाता है?

सुंदर पर्वत पर ही सबसे प्रमुख घटना घटित होने के कारण इसका नाम सुंदरकाण्ड रखा गया

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