सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ (दोहा 46 – दोहा 50) | Sunderkand Ke Dohe 46 To 50 | सुंदरकांड के 60 दोहे

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Sunderkand Ke Dohe 46 To 50 सुन्दरकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। सुन्दरकाण्ड में हनुमान का लंका प्रस्थान, लंका दहन से लंका से वापसी तक के घटनाक्रम आते हैं। ShrijiDham

श्री राम चरित मानस-सुन्दरकाण्ड (दोहा 46 – दोहा 50)

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Sunderkand Ke Dohe 46 To 50 ॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 46 ॥

तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम, जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

तब लगि हृदयँ बसत खल नाना। लोभ मोह मच्छर मद माना॥

जब लगि उर न बसत रघुनाथा। धरें चाप सायक कटि भाथा॥

ममता तरुन तमी अँधिआरी। राग द्वेष उलूक सुखकारी॥

तब लगि बसति जीव मन माहीं। जब लगि प्रभु प्रताप रबि नाहीं॥

अब मैं कुसल मिटे भय भारे। देखि राम पद कमल तुम्हारे॥

तुम्ह कृपाल जा पर अनुकूला। ताहि न ब्याप त्रिबिध भव सूला॥

मैं निसिचर अति अधम सुभाऊ। सुभ आचरनु कीन्ह नहिं काऊ॥

जासु रूप मुनि ध्यान न आवा। तेहिं प्रभु हरषि हृदयँ मोहि लावा॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 47 ॥

अहोभाग्य मम अमित अति राम कृपा सुख पुंज, देखेउँ नयन बिरंचि सिव सेब्य जुगल पद कंज।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

सुनहु सखा निज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंडि संभु गिरिजाऊ॥

जौं नर होइ चराचर द्रोही। आवै सभय सरन तकि मोही॥

तजि मद मोह कपट छल नाना। करउँ सद्य तेहि साधु समाना॥

जननी जनक बंधु सुत दारा। तनु धनु भवन सुहृद परिवारा॥

सब कै ममता ताग बटोरी। मम पद मनहि बाँध बरि डोरी॥

समदरसी इच्छा कछु नाहीं। हरष सोक भय नहिं मन माहीं॥

अस सज्जन मम उर बस कैसें। लोभी हृदयँ बसइ धनु जैसें॥

तुम्ह सारिखे संत प्रिय मोरें। धरउँ देह नहिं आन निहोरें॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 48 ॥

सगुन उपासक परहित निरत नीति दृढ़ नेम, ते नर प्रान समान मम जिन्ह कें द्विज पद प्रेम।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

सुनु लंकेस सकल गुन तोरें। तातें तुम्ह अतिसय प्रिय मोरें॥

राम बचन सुनि बानर जूथा। सकल कहहिं जय कृपा बरूथा॥

सुनत बिभीषनु प्रभु कै बानी। नहिं अघात श्रवनामृत जानी॥

पद अंबुज गहि बारहिं बारा। हृदयँ समात न प्रेमु अपारा॥

सुनहु देव सचराचर स्वामी। प्रनतपाल उर अंतरजामी॥

उर कछु प्रथम बासना रही। प्रभु पद प्रीति सरित सो बही॥

अब कृपाल निज भगति पावनी। देहु सदा सिव मन भावनी॥

एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा। मागा तुरत सिंधु कर नीरा॥

दपि सखा तव इच्छा नहीं। मोर दरसु अमोघ जग माहीं॥

अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन बृष्टि नभ भई अपारा॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 49 ॥

रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड, जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेउ राजु अखंड॥(क)।

जो संपति सिव रावनहि दीन्हि दिएँ दस माथ, सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्हि रघुनाथ॥(ख)॥

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

अस प्रभु छाड़ि भजहिं जे आना। ते नर पसु बिनु पूँछ बिषाना॥

निज जन जानि ताहि अपनावा। प्रभु सुभाव कपि कुल मन भावा॥

पुनि सर्बग्य सर्ब उर बासी। सर्बरूप सब रहित उदासी॥

बोले बचन नीति प्रतिपालक। कारन मनुज दनुज कुल घालक॥

सुनु कपीस लंकापति बीरा। केहि बिधि तरिअ जलधि गंभीरा॥

संकुल मकर उरग झष जाती। अति अगाध दुस्तर सब भाँति॥

कह लंकेस सुनहु रघुनायक। कोटि सिंधु सोषक तव सायक॥

जद्यपि तदपि नीति असि गाई। बिनय करिअ सागर सन जाई॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 50 ॥

प्रभु तुम्हार कुलगुर जलधि कहिहि उपाय बिचारि, बिनु प्रयास सागर तरिहि सकल भालु कपि धारि।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

सखा कही तुम्ह नीति उपाई। करिअ दैव जौं होइ सहाई॥

मंत्र न यह लछिमन मन भावा। राम बचन सुनि अति दुख पावा॥

नाथ दैव कर कवन भरोसा। सोषिअ सिंधु करिअ मन रोसा॥

कादर मन कहुँ एक अधारा। दैव दैव आलसी पुकारा॥

सुनत बिहसि बोले रघुबीरा। ऐसेहिं करब धरहु मन धीरा॥

अस कहि प्रभु अनुजहि समुझाई। सिंधु समीप गए रघुराई॥

प्रथम प्रनाम कीन्ह सिरु नाई। बैठे पुनि तट दर्भ डसाई॥

जबहिं बिभीषन प्रभु पहिं आए। पाछें रावन दूत पठाए॥

| Sunderkand Ke Dohe 46 To 50 End |

FaQs About Sunderkand Ke Dohe 46 To 50


सुंदरकांड में कितना खर्चा आता है?

मण्डली द्वारा सुंदरकांड के पाठ के लिए किसी भी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता

महिलाओं को सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए या नहीं?

 महिलाएं हनुमान चालीसा, संकट मोचन, हनुमानाष्टक, सुंदरकांड आदि का पाठ कर सकती हैं

क्या लड़कियां सुंदरकांड पढ़ सकती है?

हाँ, महिलाएं भी बजरंग बाण का पाठ कर सकती हैं

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