सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ (दोहा 56 – दोहा 60) | Sunderkand Ke Dohe 56 To 60 | सुंदरकांड के 60 दोहे

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Sunderkand Ke Dohe 56 To 60 सुन्दरकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। सुन्दरकाण्ड में हनुमान का लंका प्रस्थान, लंका दहन से लंका से वापसी तक के घटनाक्रम आते हैं। ShrijiDham

श्री राम चरित मानस-सुन्दरकाण्ड (दोहा 55 – दोहा 60)

Sunderkand Ke Dohe 56 To 60

Sunderkand Ke Dohe 56 To 60 ॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 56 ॥

बातन्ह मनहि रिझाइ सठ जनि घालसि कुल खीस, राम बिरोध न उबरसि सरन बिष्नु अज ईस॥(क)।

की तजि मान अनुज इव प्रभु पद पंकज भृंग, होहि कि राम सरानल खल कुल सहित पतंग॥(ख)॥

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

सुनत सभय मन मुख मुसुकाई। कहत दसानन सबहि सुनाई॥

भूमि परा कर गहत अकासा। लघु तापस कर बाग बिलासा॥

कह सुक नाथ सत्य सब बानी। समुझहु छाड़ि प्रकृति अभिमानी॥

सुनहु बचन मम परिहरि क्रोधा। नाथ राम सन तजहु बिरोधा॥

अति कोमल रघुबीर सुभाऊ। जद्यपि अखिल लोक कर राऊ॥

मिलत कृपा तुम्ह पर प्रभु करिही। उर अपराध न एकउ धरिही॥

जनकसुता रघुनाथहि दीजे। एतना कहा मोर प्रभु कीजे॥

जब तेहिं कहा देन बैदेही। चरन प्रहार कीन्ह सठ तेही॥

नाइ चरन सिरु चला सो तहाँ। कृपासिंधु रघुनायक जहाँ॥

करि प्रनामु निज कथा सुनाई। राम कृपाँ आपनि गति पाई॥

रिषि अगस्ति कीं साप भवानी। राछस भयउ रहा मुनि ग्यानी॥

बंदि राम पद बारहिं बारा। मुनि निज आश्रम कहुँ पगु धारा॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 57 ॥

बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति, बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

लछिमन बान सरासन आनू। सोषौं बारिधि बिसिख कृसानु॥

सठ सन बिनय कुटिल सन प्रीति। सहज कृपन सन सुंदर नीति॥

ममता रत सन ग्यान कहानी। अति लोभी सन बिरति बखानी॥

क्रोधिहि सम कामिहि हरिकथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥

अस कहि रघुपति चाप चढ़ावा। यह मत लछिमन के मन भावा॥

संधानेउ प्रभु बिसिख कराला। उठी उदधि उर अंतर ज्वाला॥

मकर उरग झष गन अकुलाने। जरत जंतु जलनिधि जब जाने॥

कनक थार भरि मनि गन नाना। बिप्र रूप आयउ तजि माना॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 58 ॥

काटेहिं पइ कदरी फरइ कोटि जतन कोउ सींच, बिनय न मान खगेस सुनु डाटेहिं पइ नव नीच।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

सभय सिंधु गहि पद प्रभु केरे। छमहु नाथ सब अवगुन मेरे॥

गगन समीर अनल जल धरनी। इन्ह कइ नाथ सहज जड़ करनी॥

तव प्रेरित मायाँ उपजाए। सृष्टि हेतु सब ग्रंथनि गाए॥

प्रभु आयसु जेहि कहँ जस अहई। सो तेहि भाँति रहें सुख लहई॥

प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्हीं। मरजादा पुनि तुम्हरी कीन्हीं॥

ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी। सकल ताड़ना के अधिकारी॥

प्रभु प्रताप मैं जाब सुखाई। उतरिहि कटकु न मोरि बड़ाई॥

प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई। करौं सो बेगि जो तुम्हहि सोहाई॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 59 ॥

सुनत बिनीत बचन अति कह कृपाल मुसुकाइ, जेहि बिधि उतरै कपि कटकु तात सो कहहु उपाइ।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

नाथ नील नल कपि द्वौ भाई। लरिकाईं रिषि आसिष पाई॥

तिन्ह कें परस किएँ गिरि भारे। तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे॥

मैं पुनि उर धरि प्रभु प्रभुताई। करिहउँ बल अनुमान सहाई॥

एहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइअ। जेहिं यह सुजसु लोक तिहुँ गाइअ॥

एहि सर मम उत्तर तट बासी। हतहु नाथ खल नर अघ रासी॥

सुनि कृपाल सागर मन पीरा। तुरतहिं हरी राम रनधीरा॥

देखि राम बल पौरुष भारी। हरषि पयोनिधि भयउ सुखारी॥

सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा। चरन बंदि पाथोधि सिधावा॥

॥ सुन्दरकाण्ड छन्द ॥

निज भवन गवनेउ सिंधु श्रीरघुपतिहि यह मत भायऊ,यह चरित कलि मल हर जथामति दास तुलसी गायऊ।

सुख भवन संसय समन दवन बिषाद रघुपति गुन गना,तजि सकल आस भरोस गावहि सुनहि संतत सठ मना॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 60 ॥

सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान,सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान।

| Sunderkand Ke Dohe 56 To 60 End |

FaQs Sunderkand Ke Dohe 56 To 60

सुंदरकांड का लगातार 100 दिन पाठ करने के लाभ?

जीवन में सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है। तथा जीवन की सभी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं

सुंदरकांड का लगातार 21 दिन पाठ करने का नियम?

आप भी किसी शुद्ध आसन पर बैठ जाए, तथा स्नान आदि करने के बाद ही यह कार्य शुरू करे, हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित करने के पश्चात शुद्ध घी का दीपक जलाए तथा हनुमानजी के चरणों में सात पीपल के पत्ते अर्पित करे। हनुमानजी को घी का दीपक जलाने के पश्चात सुंदरकांड का पाठ करे. तथा लड्डू का भोग लगाए।

सुंदरकांड की कौन सी चौपाई को शुरू करना होता है?

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥ गरल सुधा रिपु करहिं मिताई

सुंदर कांड को कैसे सिद्ध करें?

हनुमानजी और श्री राम की फोटो या प्रतिमा पर पुष्पमाला चढ़ाकर दीप जलाये और भोग में गुड चन्ने या लड्डू का भोग अर्पित करे

सुन्दरकाण्ड में कितने दोहे है?

सुंदरकांड में तीन श्लोक, साठ दोहे तथा पांच सौ छब्बीस चौपाइयां हैं।

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