सम्पूर्ण सुन्दर कांड पाठ (दोहा 6 – दोहा 10) | Sunderkand Ke Dohe 6 To 10 | सुंदरकांड के 60 दोहे

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Sunderkand Ke Dohe 6 to 10 सुन्दरकाण्ड वाल्मीकि कृत रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस का एक भाग (काण्ड या सोपान) है। सुन्दरकाण्ड में हनुमान का लंका प्रस्थान, लंका दहन से लंका से वापसी तक के घटनाक्रम आते हैं। ShrijiDham

श्री राम चरित मानस-सुन्दरकाण्ड (दोहा 6 – दोहा 10)

Sunderkand Ke Dohe 6 To 10

Sunderkand Ke Dohe 6 to 10 ॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 6 ॥

तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम, सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥

तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥

तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥

अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥

जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥

सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥

कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥

प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 7 ॥

अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर, कीन्हीं कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

जानतहूँ अस स्वामि बिसारी। फिरहिं ते काहे न होहिं दुखारी॥

एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा। पावा अनिर्बाच्य बिश्रामा॥

पुनि सब कथा बिभीषन कही। जेहि बिधि जनकसुता तहँ रही॥

तब हनुमंत कहा सुनु भ्राता। देखी चहउँ जानकी माता॥

जुगुति बिभीषन सकल सुनाई। चलेउ पवन सुत बिदा कराई॥

करि सोइ रूप गयउ पुनि तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥

देखि मनहि महुँ कीन्ह प्रनामा। बैठेहिं बीति जात निसि जामा॥

कृस तनु सीस जटा एक बेनी। जपति हृदयँ रघुपति गुन श्रेनी॥


॥ सुन्दरकाण्ड दोहा 8 ॥

निज पद नयन दिएँ मन राम पद कमल लीन, परम दुखी भा पवनसुत देखि जानकी दीन।

॥ सुन्दरकाण्ड चौपाई ॥

तरु पल्लव महँ रहा लुकाई। करइ बिचार करौं का भाई॥

तेहि अवसर रावनु तहँ आवा। संग नारि बहु किएँ बनावा॥

बहु बिधि खल सीतहि समुझावा। साम दान भय भेद देखावा॥

कह रावनु सुनु सुमुखि सयानी। मंदोदरी आदि सब रानी॥

तव अनुचरीं करउँ पन मोरा। एक बार बिलोकु मम ओरा॥

तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही॥

सुनु दसमुख खद्योत प्रकासा। कबहुँ कि नलिनी करइ बिकासा॥

अस मन समुझु कहति जानकी। खल सुधि नहिं रघुबीर बान की॥

सठ सूनें हरि आनेहि मोही। अधम निलज्ज लाज नहिं तोही॥


॥ सुंदरकांड दोहा 9 ॥

आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान, परुष बचन सुनि काढ़ि असि बोला अति खिसिआन।

॥ सुंदरकांड चौपाई ॥

सीता तैं मम कृत अपमाना।। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥

नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी॥

स्याम सरोज दाम सम सुंदर। प्रभु भुज करि कर सम दसकंधर॥

सो भुज कंठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥

चन्द्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल संजातं॥

सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा॥

सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥

कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥

मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढ़ि कृपाना॥


॥ सुंदरकांड दोहा 10 ॥

भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद, सीतहि त्रास देखावहिं धरहिं रूप बहु मंद।

॥ सुंदरकांड चौपाई ॥

त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका॥

सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना॥

सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी॥

खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा॥

एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई॥

नगर फिरी रघुबीर दोहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई॥

यह सपना मैं कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी॥

तासु बचन सुनि ते सब डरीं। जनकसुता के चरनन्हि परीं॥

| Sunderkand Ke Dohe 6 To 10 End |

FaQs About Sunderkand Ke Dohe 6 To 10 End

सुंदरकांड कितने दिन तक पढ़ना चाहिए?

आपको नियमित 41 दिनों तक सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए।

सुंदरकांड में क्या लिखा है?

इसमें हनुमान जी द्वारा सीता की खोज और राक्षसों के संहार का वर्णन किया गया है.

सुंदरकांड में राम शब्द कितनी बार आता है?

राम नाम का तीन बार उच्चारण हजारों देवताओं को स्मरण करने के समान है।

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